10 नागरिक शास्त्र


संघवाद

शासन की जिस व्यवस्था में किसी देश की अवयव इकाइयों और एक केंद्रीय शक्ति के बीच सत्ता की साझेदारी हो उस व्यवस्था को संघवाद कहते हैं। संघीय व्यवस्था में अक्सर सरकार के दो स्तर होते हैं। पहले स्तर पर पूरे देश के लिए केंद्र सरकार होती है और दूसरे स्तर पर राज्य सरकारें होती हैं। दोनों स्तर की सरकारें अपना प्रशासन चलाने के लिए एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं।

भारतीय गणराज्य: भारत के संविधान में ‘गणराज्य’ शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन भारतीय राष्ट्र को संघीय व्यवस्था पर बनाया गया है। भारत के संविधान के अनुसार दो स्तर के शासन तंत्र का प्रावधान है। पहले स्तर पर केंद्रीय सरकार है जो भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करती है। दूसरे स्तर पर राज्य सरकारें हैं जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। बाद में एक तीसरे स्तर को जोड़ा गया, जो पंचायत और नगरपालिका के रूप में है।

संघीय व्यवस्था के मुख्य लक्षण:

  • इस तरह की शासन व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर होते हैं।
  • शासन के विभिन्न स्तर नागरिकों के एक ही समूह पर शासन करते हैं। अलग-अलग स्तर के अधिकार क्षेत्र अलग-अलग होते हैं।
  • संविधान द्वारा हर स्तर की सरकार के अस्तित्व और अधिकार क्षेत्र को गारंटी मिली होती है।
  • संविधान के किसी भी स्तर द्वारा अकेले यह संभव नहीं होता है कि संविधान के मूलभूत प्रावधानों को बदले। इसके लिए सरकार के दोनों स्तरों की सहमति की जरूरत पड़ती है।
  • न्यायालय का अधिकार होता है संविधान का अर्थ निकालना और सरकार के विभिन्न स्तरों के कार्यों का व्याख्यान करना। जब सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच अधिकारों को लेकर कोई मतभेद उत्पन्न होता है तो सर्वोच्च न्यायालय किसी अम्पायर की तरह काम करता है।
  • सरकार के हर स्तर के लिए वित्त के स्रोत का स्पष्ट विवरण किया गया है। इससे विभिन्न स्तर के सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित की जाती है।

संघीय ढ़ाँचे के दो उद्देश्य होते हैं: देश की एकता को बल देना और क्षेत्रीय विविधता को सम्मान देना।

एक आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू होते हैं: पारस्परिक विश्वास और साथ रहने पर सहमति। यह जरूरी होता है कि सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच सत्ता की साझेदारी के नियमों पर सहमति हो। विभिन्न स्तरों में परस्पर यह विश्वास भी जरूरी होता है कि वे अपने अपने अधिकार क्षेत्रों को मानें और एक दूसरे के अधिकार क्षेत्रों में दखलंदाजी नहीं करें।

सत्ता का संतुलन

अलग-अलग देशों के संघीय ढ़ाँचे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अलग-अलग तरह से सत्ता का संतुलन होता है। जिस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर संघ का निर्माण हुआ था उस पर यह संतुलन निर्भर करता है।

संघों के निर्माण के दो तरीके हैं जो निम्नलिखित हैं:

सबको साथ लाकर संघ बनाना: इस तरह की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य अपने आप एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं। इससे उन राज्यों की स्वायत्तता बनी रहती और उनकी सुरक्षा बढ़ जाती है। ऐसी व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया में इस प्रकार की संघीय व्यवस्था है।

सबको जोड़कर संघ बनाना: इस तरह की व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्र को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है। ऐसी व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है। भारत, स्पेन और बेल्जियम में इस प्रकार की संघीय व्यवस्था है।

विषयों की लिस्ट:

  1. यूनियन लिस्ट: इस लिस्ट में ऐसे विषयों को रखा जाता है जो राष्ट्रीय महत्व के होते हैं। जिन विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है उन्हें यूनियन लिस्ट में रखा जाता है। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है। उदाहरण: देश की सुरक्षा, विदेश नीति, बैंकिंग, सूचना प्रसारण और मुद्रा।
  2. स्टेट लिस्ट: इस लिस्ट में स्थानीय महत्व के विषयों को रखा जाता है। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है। उदाहरण; पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई।
  3. साझा लिस्ट: इस लिस्ट को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं। इस लिस्ट में साझा महत्व के विषयों को रखा जाता है। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है। यदि ऐसे विषयों के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून मान्य होता है। उदाहरण; शिक्षा, वन, ट्रेड यूनियन, विवाह, दत्तक अभिग्रहण, उत्तराधिकार, आदि।
  4. बची हुई लिस्ट: ऊपर दी गई किसी भी लिस्ट के बाहर के विषय को बचे हुए विषयों की लिस्ट में रखा जाता है। ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है।

विशेष दर्जा: कुछ सीमावर्ती राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया है। इनमें से कुछ राज्यों में अन्य राज्यों के लोगों को जमीन खरीदने का अधिकार नहीं होता है।

केंद्र शासित प्रदेश: भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल कम होने के कारण उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। कुछ अन्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है। इन इकाइयों को केंद्र शाषित प्रदेश की श्रेणी में रखा गया है। इन क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं: उदाहरण; दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान निकोबार, दादर नगर हवेली, दमन दीव, आदि।

भारत में सत्ता की साझेदारी कि प्रणाली यहाँ के संविधान की मूलभूत संरचना में है। पिछले अध्याय में आपने पढ़ा है कि संविधान की मूलभूत संरचना में बदलाव लाना बहुत कठिन है। अकेले संसद द्वारा यह संभव नहीं है। ऐसा करने के लिए पहले तो उसे संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा। उसके बाद कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं से पास कराना होगा।