10 नागरिक शास्त्र


राजनीतिक पार्टी

वैसा समूह जिसका निर्माण चुनाव लड़ने और सरकार बनाने के उद्देश्य से हुआ है, राजनीतिक पार्टी कहलाता है। एक राजनीतिक पार्टी में शामिल लोग कुछ नीतियों और कार्यक्रमों पर सहमत होते हैं। इन कार्यक्रमों और नीतियों का लक्ष्य होता है समाज की भलाई करना।

अलग-अलग राजनीतिक पार्टियाँ हमारे समाज के मूलभूत राजनैतिक विभाजन का प्रतिबिंब होती हैं। राजनैतिक पार्टी समाज के किसी खास हिस्से (पार्ट) का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए इसमें पार्टिजनशिप की बात आती है। राजनीतिक पार्टी की पहचान इस बात से बनती है कि वह समाज के किस हिस्से की बात करती है, किन नीतियों का समर्थन करती है और किनके हितों की बात करती है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के तीन अवयव होते हैं।

  • नेता
  • सक्रिय सदस्य
  • अनुयायी

राजनीतिक पार्टी के कार्य:

किसी भी पार्टी का मुख्य कार्य होता है राजनैतिक पदों को भरना और सत्ता का इस्तेमाल करना। ऐसा करने के लिये राजनीतिक पार्टियाँ इन कामों को करती हैं:

चुनाव लड़ना: हर राजनीतिक पार्टी चुनाव लड़ती है। इसके लिए राजनीतिक पार्टी विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में खड़ा करती हैं।

नीति बनाना: राजनितिक पार्टियाँ जनहित को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियाँ बनाती हैं। राजनीतिक पार्टी अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को जनता के सामने रखती हैं। इससे जनता को किसी विकल्प को चुनने में मदद मिलती है। एक राजनीतिक पार्टी एक जैसी मानसिकता वाले लाखों करोड़ों लोगों को एक ही छत के नीचे लाने का कम करती है। जब जनता किसी पार्टी को सरकार बनाने के लिए चुनती है तो फिर उस पार्टी से अपनी नीतियों और कार्यक्रमों पर अमल करने की अपेक्षा रखती है।

कानून बनाना: कानून बनाने का काम विधायिका द्वारा किया जाता है। विधायिका के अधिकतर सदस्य किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य होते हैं। इसलिए कानूने बनाने की प्रक्रिया में राजनीतिक पार्टियों की प्रत्यक्ष भूमिका होती है।

सरकार बनाना: जब कोई राजनीतिक पार्टी सबसे अधिक सीटों पर चुनाव जीतती है तो वह सरकार बनाती है। कार्यपालिका का गठन सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन के लोगों द्वारा ही होता है। अलग-अलग मंत्रालयों की जिम्मेदारी विभिन्न राजनेताओं को दी जाती है।

विपक्ष की भूमिका: जिस राजनीतिक पार्टी को सरकार बनाने का मौका नहीं मिलता है उसे विपक्ष की भूमिका निभानी पड़ती है।

जनमत का निर्माण: यह किसी भी राजनीतिक पार्टी का महत्वपूर्ण काम होता है। जनमत के निर्माण के लिये पार्टियाँ विधायिका और मीडिया में ज्वलंत मुद्दों को उठाती हैं और फिर उन मुद्दों को हवा देती हैं। पार्टी के कार्यकर्ता पूरे देश में फैलकर जनता को अपने मुद्दों से अवगत कराते हैं।

सरकारी मशीनरी तक लोगों की पहुँच बनाना: राजनीतिक पार्टी का काम है सरकारी मशीनरी और लोगों के बीच एक कड़ी का काम करना। ऐसा करके वे लोगों तक जनकल्याण योजनाओं को पहुँचाती हैं।

राजनीतिक पार्टी की जरूरत

किसी भी लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टी एक अभिन्न अंग होती है। यदि कोई पार्टी नहीं होगी तो हर चुनावी क्षेत्र से एक स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा। हमारे देश में लोकसभा के 543 सदस्य हैं। यदि हर सदस्य स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर आयेगा तो बड़ी विकट समस्या खड़ी हो जाएगी। कोई भी दो सदस्य किसी भी मुद्दे पर एक ही सोच रखने में असमर्थ होगा। एक निर्दलीय सांसद पहले अपने चुनावी क्षेत्र के बारे में सोचेगा और राष्ट्रहित को किनारे कर देगा। राजनीतिक पार्टी का काम होता है विभिन्न व्यक्तित्व के राजनेताओं को एक मंच पर लाने का। इससे किसी भी बड़े मुद्दे पर एक जैसी विचारधारा बनाने में मदद मिलती है।

आज पूरी दुनिया में प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतंत्र को अपनाया गया है। इस तरह से नागरिकों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि सरकार चलाते हैं। वास्तविक जीवन में यह असंभव होता है कि हर नागरिक प्रत्यक्ष रूप से सरकार चलाने में योगदान दे पाये। इसलिए राजनीतिक पार्टियाँ अस्तित्व में आई हैं।

कितने राजनीतिक दल

विभिन्न देशों में राजनीतिक पार्टियों की संख्या अलग-अलग होती है। कुछ देशों में एक ही पार्टी होती है, तो कुछ देशों में दो पार्टियाँ होती हैं। कुछ देशों में अनेक पार्टियाँ होती हैं, जैसे भारत में। किसी भी देश में प्रचलित पार्टी सिस्टम के कई ऐतिहासिक और सामाजिक कारण होते हैं। हर सिस्टम के गुण और दोष होते हैं।

चीन में एकल पार्टी सिस्टम है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे राजनैतिक स्थिरता आती है। लेकिन एकल पार्टी सिस्टम में लोगों के पास कोई विकल्प नहीं होता है। इसलिए यह लोकतंत्र के दृष्टिकोण से सही नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में दो पार्टी सिस्टम है। इस प्रकार के सिस्टम में लोगों के पास विकल्प होता है।

हमारे देश में मल्टी पार्टी सिस्टम है। भारत के समाज में भारी विविधता होने के कारण यहाँ मल्टी पार्टी सिस्टम विकसित हुई है। मल्टी पार्टी सिस्टम में कई कमियाँ लगती हैं। कई बार तो साल दो साल में ही सरकार बदल जाती है और राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बन जाता है। लेकिन भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में अलग-अलग हितों और मतधारणाओं का सही प्रतिनिधित्व मल्टी पार्टी से ही संभव हो सकता है।

आजादी के बाद के शुरुआती दौर से लेकर 1977 तक भारत में केंद्र में केवल कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती थी। 1977 से 1980 तक जनता पार्टी की सरकार बनी। उसके बाद 1980 से 1989 तक कांग्रेस की सरकार रही। 1990 से 1991 तक जनता दल की सरकार बनी। उसके बाद 1991 से 1996 तक कांग्रेस की सरकार रही। उसके अगले 8 वर्षों तक गठबंधन की सरकारों का दौर चला। 2004 से 2014 तक कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार चली। 18 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद 2014 में किसी पार्टी को बहुमत मिला और वह अपने दम पर सरकार बना पाई। 2019 के चुनावों में भाजपा दोबारा चुनाव जीतकर आई।

राजनैतिक दलों में जन-भागीदारी:

हाल के वर्षों में एक आम धारणा बन गई है कि लोग राजनीतिक पार्टियों के प्रति उदासीन होने लगे हैं और उनपर भरोसा नहीं करते हैं। कुछ आंकड़े बताते हैं कि भारत के लिए यह धारणा कुछ हद तक सही है। पिछले कई दशकों में जो सर्वे हुए हैं उनसे निम्नलिखित बातें सामने आती हैं:

  • पूरे दक्षिण एशिया में लोगों का विश्वास राजनीतिक पार्टियों पर से उठ गया है। सर्वे में अधिकतर लोगों ने कहा कि उनका राजनीतिक पार्टियों पर ‘एकदम भरोसा नहीं’ या ‘बहुत भरोसा नहीं’ है। ऐसे लोगों की संख्या कम थी जिन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टियों पर उनका ‘कुछ भरोसा’ या ‘पूरा भरोसा’ है।
  • पूरी दुनिया में लोग राजनीतिक दलों पर कम ही भरोसा करते हैं और उन्हें संदेह की दृष्टि से देखते हैं।
  • लेकिन तब स्थिति बिलकुल अलग हो जाती है जब लोगों द्वारा राजनीतिक दलों के क्रियाकलापों में भाग लेने की आती है। कई विकसित देशों की तुलना में भारत में ऐसे लोगों का अनुपात अधिक है जिन्होंने माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं। पिछले तीन दशकों में ऐसे लोगों का अनुपात बढ़ा है जिन्होंने यह माना कि वे किसी राजनीतिक दल के सदस्य हैं। ऐसे लोगों का भी अनुपात बढ़ा जिन्होंने माना कि वे किसी राजनीतिक दल के करीब हैं।

(Source: SDSA Team, State of Democracy in South Asia, Delhi: Oxford University Press, 2007)