भारत की खोज
जवाहरलाल नेहरू
इस किताब को जवाहरलाल नेहरू ने तब लिखा था जब वे अहमदनगर की जेल में बंदी थे।
सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्हें गिरफ्तार किया गया था। इस किताब को नेहरू ने लगभग पाँच महीने में लिखा था। यह किताब भारत के इतिहास को एक रोचक नजरिये से दिखाता है। इस किताब को हर उस व्यक्ति को पढ़ना चाहिए जो इतिहास में रुचि रखता है। इस किताब को उसे भी पढ़ना चाहिए जिसे इतिहास एक उबाऊ विषय लगता है। इस किताब को पढ़ने के बाद किसी भी व्यक्ति की इतिहास में रुचि विकसित हो सकती है।
प्रश्न 1: ‘आखिर यह भारत है क्या? अतीत में यह किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? क्या उसने इस शक्ति को पूरी तरह खो दिया है? विशाल जनसंख्या का बसेरा होने क अलावा क्या आज उसके पास ऐसा कुछ बचा है जिसे जानदार कहा जा सके?’
ये प्रश्न अध्याय दो के शुरुआती हिस्से से लिए गए हैं। अब तक आप पूरी पुस्तक पढ़ चुके होंगे। आपके विचार से इन प्रश्नों के क्या उत्तर हो सकते हैं? जो कुछ आपने पढ़ा है उसके आधार पर और अपने अनुभवों के आधार पर बताइए।
उत्तर: भारत एक प्राचीन देश है जहाँ पर मानव सभ्यता का विकास हजारों वर्षों पहले शुरु हो चुका था। हड़प्पा सभ्यता; जो विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है का विकास इसी भारतभूमि पर हुआ था। इस तरह से हम कह सकते हैं भारत ‘सभ्यता’ का प्रतीक है। भारत ने अपने इतिहास में अनेकों उतार चढ़ाव देखे हैं। मध्यकालीन युग में कुछ ऐसा हुआ कि भारतीयों की रचनात्मकता समाप्त हो गई। वे बाहरी दुनिया में होने वाली गतिविधियों से मुँह मोड़ने लगे। इसी कारण से भारत कहीं न कहीं पिछड़ता चला गया जिसकी परिणती अंग्रेजों के हाथों गुलामी के रूप में हुई। लेकिन भारत में जो सबसे बड़ी शक्ति थी वह थी सभी संस्कृतियों को अपने आप में आत्मसात करने की। वह शक्ति आज भी बरकरार है। आज के भारत में ढ़ेर सारी समस्याएँ हैं। लेकिन लोग अभी भी नई तकनीकि और नये बदलावों को अपनाने में पीछे नहीं हटते हैं। यही बात शायद भारत को जानदार बनाती है।
प्रश्न 2: आपके अनुसार भारत यूरोप की तुलना में तकनीकी-विकास की दौड़ में क्यों पिछड़ गया था?
उत्तर: जब यूरोप में पुनर्जागरण हो रहा था उस समय भारत रुढ़िवादिता के शिकंजे में कसता जा रहा था। जातिवाद अपनी जड़ें बुरी तरह से जमा चुका था। इसके कारण समाज का विभाजन नियत चौखटों में हो गया था। समाज के एक वर्ग का दूसरे वर्ग के साथ विचारों का आदान प्रदान लगभग बंद हो चुका था। परदा प्रथा ने समाज के कुलीन वर्गों में अपना घर बना लिया था। इससे महिलाएँ मुख्यधारा से पूरी तरह कट चुकी थीं। इन कारणों से नये ज्ञान के प्रचार प्रसार में बाधा पड़ने लगी। इसलिए यूरोप की तुलना में भारत तकनीकी-विकास की दौड़ में पिछड़ गया था।
प्रश्न 3: नेहरू जी ने कहा कि – “मेरे खयाल से, हम सब के मन में अपनी मातृभूमि की अलग-अलग तसवीरें हैं और कोई दो आदमी बिलकुल एक जैसा नहीं सोच सकते।“ अब आप बताइए कि
- आपके मन में अपनी मातृभूमि की कैसी तसवीर है?
उत्तर: मेरी मातृभूमि एक विशाल देश है जहाँ दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहती है। यहाँ पर हर तरह की भौगोलिक संरचनाएँ है, हर प्रकार की ऋतुएँ आती जाती हैं। यहाँ के अधिकांश लोगों में एक अजीब सा अपनापन है। यहाँ लाखों समस्याएँ हैं, फिर भी यहाँ के लोग खुश रहने के हजारों बहाने तलाश ही लेते हैं। - अपने साथियों से चर्चा करके पता करो कि उनकी मातृभूमि की तसवीर कैसी है और आपकी और उनकी तसवीर (मातृभूमि की छवि) में क्या समानताएँ और भिन्नताएँ हैं?
उत्तर: मेरे मित्र ने बताया कि भारत ऐसा देश है जिसने कई महापुरुषों को जन्म दिया है। भारत ने दुनिया को शून्य दिया जिससे गिनती करना बहुत आसान हो गया।
प्रश्न 4: जवाहरलाल नेहरू ने कहा, “यह बात दिलचस्प है कि भारत अपनी कहानी की इस भोर-बेला में ही हमें एक नन्हें बच्चे की तरह नहीं, बल्कि अनेक रूपों में विकसित सयाने रूप में दिखाई पड़ता है।“ उन्होंने भारत के विषय में ऐसा क्यों और किस संदर्भ में कहा है?
उत्तर: नेहरू ने यह कथन सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में कहा है। सिंधु घाटी सभ्यता आज से कोई पाँच हजार साल पहले हुआ करती थी। इसलिए उस काल को नेहरू ने भारत की कहानी की भोर-बेला कहा है। लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता अत्यंत विकसित सभ्यता थी। वहाँ के खंडहरों से पता चलता है कि उस समय की नगर योजना कमाल की थी। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। नालियों का एक परिष्कृत तंत्र था। सार्वजनिक सुविधाएँ भी मौजूद थीं। इसलिए नेहरू ने कहा है कि उस भोर बेला में भी भारत किसी नन्हें बच्चे की तरह नहीं, बल्कि किसी सयाने की तरह दिखता है।