8 हिंदी वसंत


होली

होली हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है। पूरे देश में यह त्योहार मनाया जाता है और देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्योहार को मनाने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन भारत के ज्यादातर हिस्सों में होली के दिन लोग एक दूसरे को रंग और अबीर से सराबोर कर देते हैं।

हिंदी तारीख के अनुसार होली को चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है। उससे ठीक एक दिन पहले यानि फाल्गुन की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है। होली के पीछे कई पौराणिक कथाएँ और किंवदंतियाँ छिपी हुई हैं। लेकिन उनमें से सबसे लोकप्रिय और मान्य कहानी होलिका के बारे में है।

होली की कहानी

पुराने जमाने में एक दुर्दांत राजा हिरण्यकश्यप हुआ करता था। वह इतना शक्तिशाली हो चुका था कि अपने आगे किसी को नहीं मानता था, यहाँ तक कि भगवान को भी नहीं। सत्ता के नशे में चूर होकर उसने यह ऐलान कर दिया कि उसके राज्य में कोई भी किसी भी भगवान की पूजा नहीं कर सकता। यदि कोई ऐसा करते हुए पकड़ा जाता तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था।

हिरण्यकश्यप के बेटे का नाम प्रह्लाद था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। प्रह्लाद हमेशा हरि का नाम जपता रहता था। राजा ने उसे इस बात के लिए कई बार मना किया लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता की एक न सुनी। हिरण्यकश्यप ने क्रोधित होकर प्रह्लाद की हत्या करवाने की कई कोशिशें कीं। एक बार उसे पागल हाथी के सामने छोड़ दिया गया। एक बार उसे ऊँची पहाड़ी से नीचे फेंक दिया गया। लेकिन हर बार चमत्कार हो जाता था और प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं होता था।

हिरण्यकश्यप की बहन का नाम होलिका था। होलिका के पास एक जादुई चादर थी, जिसपर आग का असर नहीं होता था। होलिका के कहने पर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।

योजना के मुताबिक एक चिता सजाई गई। उसके ऊपर होलिका अपनी जादुई चादर ओढ़कर बैठ गई और प्रह्लाद को उसकी गोद में बिठा दिया गया। प्रह्लाद बड़े आराम से उसकी गोद में बैठ गया और हरि का नाम जपने लगा। उसके बाद चमत्कार हो गया। तेज आँधी चली और जादुई चादर उड़कर प्रह्लाद के शरीर से लिपट गई। इस तरह होलिका का अंत हो गया और प्रह्लाद को आँच तक नहीं आई।

इसी याद में लोग होलिका दहन करते हैं। इसके लिए लकड़ियों और उपलों का एक विशाल ढ़ेर तैयार किया जाता है और उसमें आग लगाई जाती है। जलती हुई होलिका के चारों ओर लोग नाचते गाते हैं।

होली के कई रूप

होली के नाम भी कई हैं। बंगाल, असम और उड़ीसा में इसे डोल जात्रा कहते हैं। ब्रज और बरसाने की लट्ठमार होली बहुत मशहूर है। पुरुष अपने हाथों में ढ़ाल ले लेते हैं और सिर पर मोटी पगड़ी बाँध लेते हैं। महिलाएँ पुरुषों के ऊपर लाठियों से वार करती हैं।

गुजरात में इसे धुलेती कहते हैं। बिहार में इसे फगुआ कहते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में होली के कई दिनों पहले से होली पर बने लोकगीतों को गाने का प्रचलन है। इन गीतों को फाग या फगुआ कहते हैं, जिनमें हँसी मजाक का पुट होता है।

होली में क्या होता है

होली रंगों का त्योहार है और रंगों के माध्यम से लोग वसंत ऋतु का उत्सव मनाते हैं। पुराने जमाने में लोग फूलों और जड़ी बूटियों से बने रंगों का इस्तेमाल करते थे। लेकिन आजकल कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल होने लगा है। कृत्रिम रंगों से त्वचा को बहुत नुकसान होता है।

होली ही एकमात्र त्योहार है जिस में कोई पूजा पाठ या धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता है। होली के दिन किसी भी बात की मनाहीं नहीं होती है। होली के दिन जिसको जो पसंद है वह खा पी सकता है। मालपुआ लगभग हर घर में बनता है। उत्तरी भारत में होली के दिन गुझिया जरूर खाई जाती है। जिनको मांसाहारी भोजन पसंद है वे इस दिन अक्सर मटन का इस्तेमाल करते हैं।

बुरे प्रभाव

होली के नाम पर मिली छूट का कई लोग गलत इस्तेमाल भी करते हैं। कई लोग पानी से भरे गुब्बारे राह चलते लोगों पर फेंकते हैं। इससे कई लोगों को गंभीर चोट लग जाती है। कुछ लोग ऐसे लोगों को भी पकड़कर रंग लगा देते हैं जिन्हें रंगों से परहेज है। कुछ लोग होली के बहाने महिलाओं से बदतमीजी भी करते हैं। कुछ लोग नशीली चीजों का इस्तेमाल करते हैं और फिर ऊल जलूल हरकते करते हैं। यह सब देखकर कई बार मन खट्टा हो जाता है।

उपसंहार

होली के बारे सबसे अच्छी बात यह है कि होली के दिन हर कोई पुराने वैर भाव भूलकर एक दूसरे के गले लगता है। सामने कोई अजनबी भी पड़ जाए तो उसे गले मिलकर होली की शुभकामनाएँ देना अच्छी बात मानी जाती है।