9 हिंदी क्षितिज


एक कुत्ता और एक मैना

हजारी प्रसाद द्विवेदी

NCERT Solution

Question 1: गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया?

उत्तर: लेखक इस बारे में बहुत आश्वस्त नहीं हैं। लेखक को लगता है कि गुरुदेव ने शायद मौज के लिए शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन बनाया। लेकिन पूरे लेख को पढ़कर ऐसा लगता है कि गुरुदेव कुछ दिन शांति से बिताना चाहते थे इसलिए शांतिनिकेतन की भीड़भाड़ से दूर रहना चाहते थे।

Question 2: मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: पाठ में गुरुदेव के प्रति कुत्ते की संवेदनशीलता को दिखाया गया है। कुत्ता अपने आप ही श्रीनिकेतन पहुँच जाता है ताकि गुरुदेव के हाथों से सहलाए जाने का सुख ले सके। फिर वह कुत्ता अपनी संवेदनशीलता तब दिखाता है जब गुरुदेव के अस्थिकलश को शांतिनिकेतन में लाया जाता है।

Question 3: गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया?

उत्तर: पहले लेखक को लगता था कि मैना ऐसी चिड़िया है जिसमें करुणा के लिए कोई स्थान ही नहीं है। जब गुरुदेव ने लेखक को लंगड़ी मैना की करुणा के बारे में बताया तो लेखक इस बात का अर्थ समझ में आया।

Question 4: प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: लेखक ने ऐसा कई बार किया है। शुरु में लेखक ने गुरुदेव के बुढ़ापे और उससे उत्पन्न समस्या के बारे में बताया है। उसके बाद लेखक ने अपने और गुरुदेव के बीच के वार्तालाप के माध्यम से गुरुदेव की शख्सियत के बारे में बताया है। फिर लेखक ने कुत्ते और मैना का उदाहरण देते हुए अपनी बात पूरी की है। हर प्रकरण में लेखक ने बड़ी ही जटिल भाषा और उपमाओं का प्रयोग किया है।

Question 5: आशय स्पष्ट कीजिए: इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।

उत्तर: कुत्ता जब किसी मनुष्य के प्रति वफादारी दिखाता है तो बदले में उसे केवल प्रेम की आवश्यकता होती है। ऐसा निस्वार्थ प्रेम अक्सर मनुष्यों में देखने को नहीं मिलता है। लेकिन ऐसा अक्सर होता है कि एक आदमी दूसरे आदमी के स्वार्थी भाव को पढ़ नहीं पाता है।