9 हिंदी क्षितिज


बच्चे काम पर जा रहे हैं

राजेश जोशी

कोहरे से ढ़ँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?

यह कविता राजेश जोशी ने लिखी है। इस कविता में बाल श्रम की समस्या को उजागर किया गया है। कवि का कहना है कि बच्चे मजदूरों की तरह काम करते हैं और सुबह से ही काम पर लगा दिए जाते हैं। बच्चों का काम करना हमारे समय की एक भयानक और शर्मनाक बात हैं। कवि का कहना है कि उससे भी भयानक है इस बात को किसी विवरण या समाचार या खबर की तरह लिखा जाना। कवि का कहना है कि इस बात को एक सवाल की तरह लिखा जाना चाहिए कि बच्चों को काम पर जाने की नौबत क्यों आई।

क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़े के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढ़ह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?

बच्चों की उम्र काम करने की नहीं होती है। यह उम्र खेलने कूदने, पढ़ने लिखने की होती है ताकि बच्चों का समुचित शारीरिक और मानसिक विकास हो सके। कवि सवाल पूछता है कि क्या सारी गेंदें अंतरिक्ष में गिर गई हैं, या फिर सारे खिलौने किसी काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं कि बच्चों के लिए खेलने की कोई चीज ही नहीं बची है। कवि सवाल पूछता है कि क्या सभी स्कूलों की इमारतें किसी भूकंप में तबाह हो गई हैं कि बच्चे पढ़ने नहीं जा रहे हैं। कवि सवाल करता है कि क्या सभी मैदान, बगीचे और आँगन समाप्त हो गए हैं कि बच्चे अपने घरों या आस पड़ोस में अपने बचपन का जश्न नहीं मना पा रहे हैं।

जिस बच्चे को काम पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है उसे खेल खिलौनों और पढ़ाई लिखाई से कोसों दूर होना पड़ता है। ऐसे बच्चों का बचपन बहुत त्रासदी में बीतता है।

कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।

कवि का कहना है अगर वाकई में सारे खिलौने, किताबें, स्कूल और घर आँगन तबाह हो जाए तो बड़ी ही भयानक स्थिति बन जाए। लेकिन ऐसा नहीं है। इससे भी ज्यादा बुरी बात यह है कि पूरा समाज बच्चों द्वारा मजदूरी करने की बात को हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा मान लेता है। समाज को लगता है कि यह सब सामान्य बात है। बहुत कम ही लोग होते हैं जो इस गंभीर मुद्दे पर गंभीरता से सोचते हैं। इसी का नतीजा है कि आज जब इंसान चाँद पर जाने के काबिल हो चुका है, कई गंभीर बीमारियों का इलाज संभव हो चुका है, उसके बावजूद हजारों लाखों बच्चों को बाल मजदूरी करने को विवश होना पड़ता है।