स्पर्श 10 हिंदी


कर चले हम फिदा

कैफी आजमी

कर चले हम फिदा जानो-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
साँस थमती गई, नब्ज जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

यह कविता भारत चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखी गई थी। इसमें एक सिपाही की उस समय की भावना को चित्रित किया गया है जब उसकी शहादत का समय नजदीक आ गया है। सिपाही की साँस थमने लगी है और नब्ज भी रुकने लगी है। फिर भी दुश्मन की तरफ उसके बढ़ते कदम रुक नहीं रहे हैं। उसका साहस इस कदर है कि मौत के सामने भी उसका संकल्प अदम्य है। सैनिक देश के लिए अपनी जान और अपना शरीर सब निछावर कर रहा है और आगे आने वाली पीढ़ी के लिए देश सौंप रहा है। उसे पूरी उम्मीद है कि अगली पीढ़ी भी देश की उतना ही हिफाजत करेगी|

जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुल्हन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

जिन्दा रहने के बहुत से अवसर आते हैं इसलिए जिंदगी जी लेना बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। वतन पे जान देने के मौके बहुत ही कम बार मिलते हैं। वो युवा जो देश के लिए खून की होली न खेले उसकी जवानी को सराहने के लिए कोई भी सुंदरी तैयार नहीं होती है। हिम्मती पुरुषों की दुनिया हमेशा से कायल रही है। जवानों के खून से ऐसा लगता है जैसे धरती को लाल चुनरी पहना दी गई हो।

राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफिले
फतह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो अपने सर से कफन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शहीद होने वाले सैनिक को पूरी उम्मीद है कि उसने जो कुर्बानी की राह बनाई है उसपर अनंत समय तक वीरों का काफिला ऐसे ही चलता रहेगा। जिंदगी मौत से इस तरह गले मिल रही है जैसे वह दुश्मन पर विजय का उत्सव मना रही हो।

खींच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

सैनिक कहता है सीमा पर अपने खून से लक्ष्मण रेखा खींच देनी चाहिए ताकि उसे लाँघकर कोई भी रावण अंदर नहीं आ सके। यदि कोई हाथ हम पर उठने लगे तो उस हाथ को फौरन तोड़ देना चाहिए। यहाँ पर मातृभूमि की तुलना सीता से की गई है जिसका दामन छूने का कोई साहस न कर सके। सैनिक यह भी प्रेरणा देता है कि हमीं में राम भी हैं और लक्ष्मण भी। अर्थात हम हर तरह से अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में सक्षम हैं।

एक पूरे संदेश के तौर पर देखा जाए तो यह वीर रस और करुण रस का मिला जुला रूप लगता है; खासकर जिस तरीके से इस गाने को फिल्म में प्रस्तुत किया गया है। जिस परिवेश में यह फिल्म बनी थी उस समय भारत हाल ही में आजाद हुआ था। उस समय देश में बहुत सारी समस्याएँ थीं। चीन से युद्ध का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ा था। उस समय एक ऐसे संदेश की जरूरत थी जो देशवासियों को उसके वीरों की कुर्बानिओं से परिचित कराये और स्वावलंबी बनने की प्रेरणा दे सके। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर जनता में नई प्रेरणा दी थी। यह गीत उस समय की सामरिक तथा सामाजिक मन:स्थिति का बड़ा ही सटीक चित्रण करता है।