वीरेन डंगवाल
तोप
कंपनी बाग के मुहाने पर
धर रखी गई है यह १८५७ की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल, विरासत में मिले कंपनी बाग की तरह
साल में चमकाई जाती है दो बार।
पार्क के गेट पर अंग्रेजों के जमाने की तोप बहुत संभाल के विरासत के तौर पर रखी हुई है। विरासत में मिली चीजें ऐतिहासिक महत्व की होती हैं। इसलिए इस तोप की भी पूरी देखभाल होती है। साल में दो बार यानि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के दिन इसे कायदे से चमकाया जाता है। इतिहास के प्रतीक अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। जैसे कि कंपनी का बाग और कंपनी की तोप। दोनों ही स्थिति में उन्हें धरोहर की तरह सम्भालना चाहिए। क्योंकि इतिहास हमें बताता है कि कहाँ हमने सही किया और कहाँ हमसे चूक हुई।
सुबह शाम कंपनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे अच्छे सूरमाओं के धज्जे
अपने जमाने में
जो भी सैलानी वहाँ घूमने आते हैं उन्हें इस तोप का विशाल आकार मौन रहकर भी अपने उत्कर्ष के दिनों की कहानी सुनाता है। कोई भी इसकी कल्पना मात्र से सिहर उठ सकता है कि कैसे इस तोप ने कितने ही देशप्रेमियों को मौत के घाट उतार दिया होगा।
अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अक्सर करती हैं गपशप
कभी-कभी शैतानी में वे उसके भीतर भी घुस जाती हैं
खासकर गौरैयें
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।
ये पंक्तियाँ तोप की वर्तमान दशा को चित्रित करती हैं। सत्ता और सफलता के मद में चूर व्यक्ति जब बढ़ चढ़कर बोलने लगता है तो उसे एक बड़ा तोप कहा जाता है। लेकिन ये एक कड़वी सच्चाई है कि बड़े से बड़े तोप का मुँह भी एक न एक दिन बंद हो जाता है।
इस तोप की भी आजकल यही दशा है। इस पर बच्चे घुड़सवारी करते हैं और चिड़िया इसपर बैठकर चहचहाती हैं। बच्चों और चिड़ियों की उपमा इस लिए दी गई है कि ये दोनों निर्बलता और कोमलता के प्रतीक हैं। जो तोप किसी जमाने में सूरमाओं की धज्जियाँ उड़ा देता था आज ये आलम है कि चिड़िया जैसी निरीह प्राणी भी उसके मुँह के अंदर घुसकर खिलवाड़ करती हैं।