10 इतिहास


युद्ध के बाद के समझौते

दूसरा विश्व युद्ध पहले हुए युद्धों की तुलना में बिलकुल अलग था। दूसरे विश्व युद्ध में आम नागरिक कहीं अधिक संख्या में मारे गये और कई महत्वपूर्ण शहर बुरी तरह तबाह हो चुके थे। माना जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध में प्रत्यक्ष या प्रोक्ष रूप से करीब 6 करोड़ लोग मारे गये थे जो उस समय की जनसंख्या का 6 प्रतिशत था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद की स्थिति में सुधार मुख्य रूप से दो बातों से प्रभावित हुए थे।

विश्व के नेताओं की मीटिंग हुई जिसमें युद्ध के बाद के संभावित सुधारों पर चर्चा की गई। उन्होंने दो बातों पर ज्यादा ध्यान दिया जिन्हें नीचे दिया गया है।

ब्रेटन वुड्स इंस्टिच्यूशन

1944 की जुलाई में अमेरिका के न्यू हैंपशायर के ब्रेटन वुड्स नामक जगह पर संयुक्त राज्य मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन (United Nations Monetary and Financial Conference) हुआ। इस सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) की स्थापना हुई। इस संस्था को सदस्य देशों के बाहरी नफे और नुकसान की देखभाल के लिये बनाया गया।

युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण की फंडिंग के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निमाण एवं विकास बैंक (International Bank for Reconstruction and Development) की स्थापना की गई, जिसे विश्व बैंक के नाम से भी जाना जाता है। इन दोनों संस्थानों को ब्रेटन वुड्स इंस्टिच्यूशन भी कहा जाता है, और युद्ध के बाद की आर्थिक प्रणाली को ब्रेटन वुड्स सिस्टम भी कहा जाता है।

विभिन्न मुद्राओं के लिए एक निर्धारित विनिमय दर ही ब्रेटन वुड्स सिस्टम का आधार था। डॉलर की कीमत को सोने की कीमत से जोड़ा गया जिसमें एक आउंस सोने की कीमत थी 35 डॉलर। अन्य मुद्राओं को डॉलर के मुकाबले अलग-अलग निर्धारित दरों पर रखा गया।

युद्ध के बाद के शुरुआती साल

ब्रेटन वुड्स सिस्टम द्वारा पश्चिम के औद्योगिक देशों और जापान में एक अप्रत्याशित आर्थिक विकास के युग की शुरुआत हुई। 1950 से 1970 के बीच विश्व का व्यापार 8% की दर से बढ़ा और आमदनी लगभग 5% की दर से बढ़ी। ज्यादातर औद्योगिक देशों में बेरोजगारी 5% से भी कम थी। इन आँकड़ों पता चलता है कि इस अवधि में कितनी आर्थिक स्थिरता आई थी।

उपनिवेशों का अंत और आजादी

दूसरे विश्व युद्ध के दो दशकों के भीतर कई उपनिवेश स्वतंत्र हो गए और नए राष्ट्र के रूप में सामने आये। शोषण के एक लंबे इतिहास ने इन देशों को भारी आर्थिक संकट में डाल दिया था। शुरुआती दौर में ब्रेटन वुड्स इंस्टिच्यूशन इन देशों की मांग को पूरा करने की स्थिति में नहीं थे। इस बीच यूरोप और जापान ने इतनी तरक्की कर ली थी कि ब्रेटन वुड्स इंस्टिच्यूशन से स्वतंत्र हो गये थे। 1950 के दशक के आखिर में आकर ब्रेटन वुड्स संस्थानों ने दुनिया के विकासशील देशों की ओर ध्यान देना शुरु किया।

ये संस्थाएँ पुरानी उपनिवेशी ताकतों के नियंत्रण में थी। इसलिए ज्यादातर विकासशील देशों पर अभी भी उन ताकतों द्वारा शोषण का खतरा बना हुआ था। इन देशों ने एक नए आर्थिक ढ़ाँचे की मांग रखने के लिए G – 77 (77 देशों का समूह) बनाया। उनकी मुख्य मांगें थीं; अपने प्राकृतिक संसाधनों पर सही मायने में नियंत्रण, कच्चे माल की सही कीमत और विकसित बाजारों में बेहतर पकड़।

ब्रेटन वुड्स का अंत और भूमंडलीकरण

1960 आते आते विदेशों में अधिक दखलअंदाजी करने के कारण अमेरिका की शक्ति क्षीण पड़ने लगी थी। अब डॉलर अपनी कीमत को सोने की तुलना में बचा नहीं पा रहा था। इस तरह से निर्धारित विनिमय दर की प्रणाली समाप्त हुई और अस्थाई विनिमय दर की परिपाटी शुरु हुई।

1970 के दशक के मध्य के बाद से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था कई मायने में बदल गई। इसके पहले विकासशील देश किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संस्था से वित्तीय सहायता की मांग करने के लिए स्वतंत्र थे। लेकिन अब उन्हें पश्चिम के कॉमर्शियल बैंकों और प्राइवेट लेंडिंग संस्थाओं से कर्ज लेने के लिये बाध्य होना पड़ता था। इससे कई बार ऐसा होता था कि विकासशील देशों में कर्जे की समस्या, बेरोजगारी और गिरती आमदनी की समस्या खड़ी हो जाती थी। कई अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों को इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा।

1949 की क्रांति के बाद चीन बाकी दुनिया से अलग थलग था। लेकिन अब चीन ने भी नई आर्थिक नीतियों को अपनाना शुरु कर दिया और विश्व की अर्थव्यवस्था के करीब आने लगा। कई पूर्वी यूरोपियन देशों में सोवियत शैली के समाजवाद के पतन के बाद कई नए देश भी विश्व की नई अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन गये।

चीन, भारत, ब्राजील, फिलिपींस, मलेशिया, आदि देशों में मजदूरी दर काफी कम थी। इसलिए कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इन देशों को अपने उत्पाद बनाने के लिए इस्तेमाल करना शुरु किया। भारत बिजनेस प्रॉसेस आउटसोर्सिंग का एक महत्वपूर्ण हब बन गया। हाल के दशकों में कई विकासशील देशों ने तेजी से वृद्धि की है। भारत, चीन और ब्राजील इसके बेहतरीन उदाहरण हैं।