इटली का एकीकरण
उन्नीसवीं सदी के मध्य काल का इटली आज की तरह एक राष्ट्र न होकर सात प्रांतों में बँटा हुआ था और विभिन्न भागों पर अलग अलग शासकों का राज चलता था। एक इटालियन राजपरिवार सार्डिनिया पिडमॉन्ट पर शासन करता था। उत्तरी भाग पर ऑस्ट्रिया के हैब्सबर्ग साम्राज्य का शासन था, मध्य भाग पर पोप का और दक्षिणी भाग पर स्पेन के बोर्बोन राजाओं का शासन था। इटालियन भाषा के कई क्षेत्रीय और स्थानीय प्रारूप हुआ करते थे।
जिउसेपे मेत्सीनी
जिउसेपे मेत्सीनी ने 1830 के दशक में एक समग्र इटालियन गणराज्य की योजना बनाई। लेकिन 1831 और 1848 के विद्रोह विफल होने के बाद इस काम की जिम्मेदारी सार्डिनिया पिडमॉन्ट के शासक विक्टर इमैन्युएल द्वितीय पर आ गई। उन शासकों को लगता था कि इससे इटली में तेजी से आर्थिक विकास होगा।
इटली के एकीकरण के लिये मुख्यमंत्री कैवर ने आंदोलन का नेतृत्व संभाला। कैवर ने फ्रांस से एक कूटनीतिक गठबंधन किया और 1859 में ऑस्ट्रिया की सेना को हरा दिया। उस लड़ाई में सैनिकों के अलावा कई सशस्त्र स्वयंसेवकों ने भी भाग लिया था जिनकी अगुवाई जिउसेपे गैरीबाल्डी कर रहे थे। सन 1869 की मार्च के महीने में वे दक्षिण इटली और ट्रू सिसली के राज्य को ओर बढ़े। उन्होंने स्थानीय किसानों का समर्थन जीता और फिर स्पैनिश शासकों को सत्ता से हटा दिया। 1861 में विक्टर इमैन्युएल (द्वितीय) को एक समग्र इटली का राजा घोषित किया गया। लेकिन अशिक्षा के कारण इटली के लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा इस उदारवादी-राष्ट्रवादी विचारधारा से बिलकुल अनजान था।
ब्रिटेन की अजीबोगरीब कहानी
अठारहवीं सदी से पहले ब्रिटिश द्वीप अलग-अलग नस्लों में बँटे हुए थे जिनकी अलग-अलग सांस्कृतिक और राजनैतिक परंपरा था; जैसे कि इंगलिश, वेल्श, स्कॉट या आइरिस। इंग्लिश राष्ट्र के धन, संपदा, महत्व और ताकत में वृद्धि होने के साथ-साथ ब्रिटिश द्वीपसमूहों के अन्य राष्ट्रों पर इंग्लिश राष्ट्र का प्रभुत्व बढ़ रहा था। एक लंबे झगड़े के बाद इंगलिश पार्लियामेंट ने 1688 में राजपरिवार से सत्ता ले ली। ब्रिटेन के राष्ट्रों के निर्माण में इंग्लिश पार्लियामेंट की अहम भूमिका रही है। 1707 में इंगलैंड और स्कॉटलैंड के बीच यूनियन ऐक्ट बना जिसके परिणामस्वरूप “यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन” की स्थापना हुई।
इंग्लैंड हमेशा से इस यूनियन में अधिक प्रभावशाली रहा है। इसलिए ब्रिटिश पहचान बढ़ने के साथ स्कॉटलैंड और आयरलैंड की संस्कृति और राजनैतिक संस्थाएँ कमजोर होती चली गई। 1902 में यूनाइटेड किंगडम में जबरदस्ती आयरलैंड को मिला लिया गया। फिर वहाँ के लोगों पर इगलिश संस्कृति को थोपा जाने लगा।
राष्ट्र की कल्पना
उदारवाद, न्याय और प्रजातंत्र जैसी अमूर्त भावनाओं को दर्शाने के लिए कलाकारों ने रूपक के लिए एक महिला की तस्वीर का इस्तेमाल किया। फ्रांस में राष्ट्र को मैरियेन का नाम दिया गया। यह ध्यान देने योग्य है कि मैरियेन इसाई महिलाओं का एक लोकप्रिय नाम है। मैरियेन के चरित्र चित्रण के लिए उदारवाद और प्रजातंत्र के रूपकों का प्रयोग हुआ, जैसे लाल टोपी, तिरंगा, कलगी, आदि। लोगों में मैरियेन की पहचान घर करने के उद्देश्य से उसकी मूर्तियाँ बनीं और टिकटों और सिक्कों पर उसकी तस्वीर छापी गई। जर्मनी में जर्मेनिया को राष्ट्र का प्रतीक बनाया गया। जर्मनी में जैतून को बहादुरी का प्रतीक माना जाता है, इसलिए जर्मेनिया के सिर पर जैतून के पत्तों का ताज है।
राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
उन्नीसवीं सदी के अंत अने तक राष्ट्रवाद में उदारवादी और प्रजातांत्रिक भावनाएँ कम होने लगीं। अब क्षणिक लक्ष्यों को साधने के लिए राष्ट्रवाद का हथियार के रूप में इस्तेमाल होने लगा। इसका उपयोग यूरोप की मुख्य शक्तियों ने अपनी साम्राज्यवादी महात्वाकांछाओं को साधने के लिये शुरु कर दिया।
बाल्कन में संकट
बाल्कन भौगोलिक और नस्ली विविधता से भरपूर क्षेत्र था और यहाँ के लोगों को मोटे तौर पर स्लाव कहा जाता था। बाल्कन के क्षेत्र में आज के रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया, ग्रीस, मैकेडोनिया, क्रोशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टेनीग्रो आते थे।
बाल्कन का एक बड़ा हिस्सा ओटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था। लेकिन वह ऐसा दौर था जब ओटोमन साम्राज्य बिखर रहा था और बाल्कन में रोमांटिक राष्ट्रवादी भावना बढ़ रही थी। पूरी उन्नीसवीं सदी के दौरान ओटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों के द्वारा अपनी ताकत बढ़ाने की असफल कोशिश की थी। एक एक करके ऑटोमन के अधीनस्थ यूरोपीय देश अलग होते गये और अपनी आजादी की घोषणा करते गये। लेकिन उस प्रक्रिया के दौरान यह क्षेत्र कई गंभीर झगड़ों का अखाड़ा बन चुका था। बाल्कन पर नियंत्रण पाने का उद्देश्य भी इन झगड़ों में शामिल था।
उस समय विभिन्न यूरोपीय ताकत उपनिवेशों और व्यापार को बढ़ाने के लिये भी कशमकश कर रहे थे। वे नौसेना और सेना को मजबूत करने के लिए भी लड़ रहे थे। इन्हीं झगड़ों के कारण कई लड़ाइयाँ हुईं और उनकी परिणति प्रथम विश्व युद्ध के रूप में हुई।
इस बीच यूरोपीय शक्तियों के कई उपनिवेश अब उपनिवेशी शक्तियों का विरोध कर चुके थे। अलग-अलग उपनिवेशों ने राष्ट्रवाद की अपनी नई परिभाषा बनाई। इस तरह से ‘राष्ट्र’ का आइडिया विश्वव्यापी हो गया।