10 इतिहास


भारत में राष्ट्रवाद

NCERT Abhyas

प्रश्न 1: व्याख्या करें:

(a) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?

उत्तर: उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन ने लोगों एक ऐसा माध्यम दिया जिससे विविध प्रकार के लोग एकता के सूत्र में बंध पाये। इसलिए हम कह सकते हैं कि उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी।

(b) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?

उत्तर: प्रथम विश्व युद्ध में भारत प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं था, लेकिन इंगलैंड तो सीधे रूप से उस युद्ध में भाग ले रहा था। इसका असर भारत पर पड़ना स्वाभाविक था। युद्ध से होने वाले रक्षा खर्चे में हुई वृद्धि को पूरा करने के लिये इंगलैंड ने कर्ज लिये और कई टैक्स बढ़ाये। अधिक राजस्व संग्रह के उद्देश्य से सीमा शुल्क को बढ़ाया गया और आय कर को शुरु किया गया। इन सब कारणों से 1913 से 1918 के बीच अधिकतर चीजों के दाम दोगुने हो गये। कीमतें बढ़ने से आम आदमी की मुसीबतें बढ़ गई। प्रथम विश्व युद्ध में लड़ने के लिए लोगों को सेना में जबरन भर्ती किया गया, जिससे ग्रामीण इलाकों में बहुत आक्रोश था।

(c) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे?

उत्तर: यह ऐक्ट इसलिये बनाया गया था ताकि सरकार के पास राजनैतिक गतिविधियों को कुचलने के लिए असीम शक्ति मिल जाये। रॉलैट ऐक्ट के अनुसार राजनैतिक कैदियों को बिना ट्रायल के ही दो साल तक के लिये कैद किया जा सकता था। इसलिए भारत के लोग रॉलट एक्ट के खिलाफ थे।

(d) गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया?

उत्तर: 1921 के अंत आते आते, कई स्थानों पर आंदोलन नियंत्रण से बाहर हो चुका था और हिंसक रूप लेने लगा था। इसलिए फरवरी 1922 में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय ले लिया।

प्रश्न 2: सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?

उत्तर: महात्मा गांधी ने जनांदोलन के लिये सत्याग्रह नाम का नया तरीका इजाद किया। सत्याग्रह का मतलब है कि अगर आप सही मकसद के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं तो आपको अपने ऊपर अत्याचार करने वाले से लड़ने के लिये ताकत की जरूरत नहीं होती है। गांधीजी का दृढ़ विश्वास था कि आप सत्याग्रह की मदद से अपनी लड़ाई अहिंसा के द्वारा जीत सकते हैं।

प्रश्न 3: निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें:

(a) जलियाँवाला बाग हत्याकांड

उत्तर: अमृतसर, 13 अप्रैल 1919: आज जलियाँवाला बाग में बड़ा ही दर्दनाक हादसा हो गया। बाग में बैसाखी के मेले में आये हजारों निर्दोष लोगों पर अंग्रेजी जेनरल डायर ने गोली चलाने के आदेश दिये। कोई भी बचकर भागने न पाये इसके लिए बाहर जाने के सभी रास्ते बंद कर दिये गये थे। इस नृशंस गोलीकांड में कई लोग मारे गये और उनसे कई गुना अधिक घायल हो गये। पूरा देश इस दुर्घटना से सकते में आ गया है।

(b) साइमन कमिशन

उत्तर: लंदन 1928: भारत में संवैधानिक सिस्टम की कार्यप्रणाली को सुचारु करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने साइमन कमीशन का गठन किया है। ऐसा कहा गया है कि यह कमीशन भारत के संवैधानिक प्रणाली का अध्ययन करेगा और उसमें बड़े बदलाव लाने का प्रस्ताव रखेगा। लेकिन भारत के मामले में फैसला लेने के लिए बने इस कमीशन की सबसे बड़ी विडंबना है इस कमीशन में एक भी भारतीय का न होना। इसलिए कांग्रेस और अन्य दल ने इस कमिशन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है।

प्रश्न 4: इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।

उत्तर: भारत माता की छवि और जर्मेनिया की छवि में जो समानता है वह है मातृभूमि को एक महिला के रूप में दिखाना। दोनों तस्वीरों में महिला को पारंपरिक परिधानों से सजाया गया है तथा उनके हाथों में कुछ रूपक दर्शाए गये हैं। ये रूपक स्वतंत्रता, उदारवाद, शांति और ऊर्जा के प्रतीक हैं।

प्रश्न 5: 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखए हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।

उत्तर: असहयोग आंदोलन में किसान, आदिवासी, बागान मजदूर, छात्र, वकील, सरकारी कर्मचारी, महिलाएँ, आदि शामिल हुई थीं। इनमे से तीन का विवरण नीचे दिया गया है:

किसान: तालुकदार और जमींदार अधिक मालगुजारी की मांगी कर रहे थे। किसानों से बेगारी करवाई जा रही थी। इन सबके विरोध में किसान उठ खडे हुए थे। किसानों चाहते थे कि मालगुजारी कम हो, बेगार समाप्त हो और कठोर जमींदारों का सामाजिक बहिष्कार हो।

आदिवासी: महात्मा गाँधी के स्वराज का आदिवासी किसानों ने अपने ही ढ़ंग से मतलब निकाला था। जंगल से संबंधित नये कानून बने थे। ये कानून आदिवासी किसानों को जंगल में पशु चराने, तथा वहाँ से फल और लकड़ियाँ लेने से रोक रहे थे। इस प्रकार जंगल के नये कानून किसानों की आजीविका के लिये खतरा बन चुके थे। आदिवासी किसानों को सड़क निर्माण में बेगार करने के लिये बाध्य किया जाता था। आदिवासी क्षेत्रों में कई विद्रोही हिंसक भी हो गये। कई बार अंग्रेजी अफसरों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध भी हुए।

बागान मजदूर: चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति खराब थी। इंडियन एमिग्रेशन ऐक्ट 1859 के अनुसार, बागान मजदूरों को बिना अनुमति के बागान छोड़कर जाना मना था। असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर कई मजदूरों ने अधिकारियों की बात मानने से इंकार कर दिया। वे बागानों को छोड़कर अपने घरों की तरफ चल पड़े। लेकिन रेलवे और स्टीमर की हड़ताल के कारण वे बीच में ही फंस गए, जिससे उन्हें कई मुसीबतें झेलनी पड़ीं। पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और बुरी तरह पीटा।

प्रश्न 6: नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।

उत्तर: नमक यात्रा: 12 मार्च 1930 को गांधी जी दांडी मार्च या नमक आंदोलन शुरु किया। उनके साथ 78 विश्वस्त अनुयायी शामिल थे। महात्मा गांधी और उनके अनुयायी 24 दिनों तक पैदल चले और साबरमती से दांडी तक की 240 मील की दूरी तय की। रास्ते में कई अन्य लोग उनके साथ हो लिए। 6 अप्रैल 1930 को गाँधीजी ने मुट्ठी भर नमक उठाकर प्रतीकात्मक रूप से इस कानून को तोड़ा।

नमक एक शक्तिशाली प्रतीक था जिसे हर व्यक्ति से जोड़ा जा सकता था। नमक का इस्तेमाल हर तबके का आदमी समान रूप से करता है। ऐसा नहीं है कि अमीर आदमी अधिक नमक खायेगा और गरीब कम नमक खायेगा। किसी उद्योगपति या व्यवसायी के लिए यह उम्मीद जगती थी कि कई अन्य कर समाप्त हो सकते थे जिनसे व्यवसाय प्रभावित हो रहा था। किसी आम आदमी के लिए नमक कर समाप्त होने से नमक की कीमत में गिरावट की उम्मीद जगती थी।

प्रश्न 7: कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफरमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता।

उत्तर: पारंपरिक तौर पर एक महिला की भूमिका घर चलाने की मानी जाती है। लेकिन असहयोग आंदोलन में भाग लेकर मैं राष्ट्र निर्माण में भागीदारी कर सकूंगी। यह मेरे लिए किसी प्रोत्साहन से कम नहीं होगा। मेरी ड्यूटी थी लाठी चार्ज में घायल व्यक्तियों की सेवा करना। ऐसा करने से मेरा हृदय उल्लास से भर गया। ऐसा लग रहा था कि अपने काम के जरिये मैं गांधीजी के बड़े लक्ष्य में अपना योगदान कर रही थी।

प्रश्न 8: राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे?

उत्तर: मुस्लिम लीग के नेता मानते थे कि मुसलमानों का भविष्य हिंदू बहुल देश में सुरक्षित रखने के लिए पृथक निर्वाचिका की जरूरत थी। वह अपने समुदाय के लोगों के लिए बेहतर राजनैतिक शक्ति की इच्छा रखते थे। भारत में दलितों के उत्पीड़न का लंबा इतिहास रहा है। इसलिए दलितों के नेताओं को आशंका थी की सवर्णों के हाथ में सत्ता आने से दलितों की स्थिति और भी खराब होगी। इसलिए वे दलितों के लिए पृथक निर्वाचिका की मांग कर रहे थे। लेकिन गांधीजी का मानना था कि पृथक निर्वाचिका मुसलमानों और दलितों को मुख्य धारा से दूर ले जायेगी। इसलिए राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर बँटे हुए थे।