पंचतंत्र

चोर और पंडित

किसी गाँव में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था॥ वह इतना गरीब था कि अपने लिए दो जून की रोटी भी नहीं जुटा पाता था। उसी गाँव में एक धनी व्यापारी रहता था। उस व्यापारी को पंडित की दशा देख कर दया आ गई। उसने पंडित को दो बछड़े दान में दिए। पंडित ने बड़े जतन से उन बछड़ों को पाल पोस कर बड़ा किया। कुछ साल बीतने के बाद दोनों बछड़े बड़े होकर तगड़े बैल बन गए।

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उन बछड़ों पर एक चोर की नजर थी। उसने उस पंडित से बैलों को चुराने की एक योजना बनाई। उसे गाँव के पास एक श्मशान में एक राक्षस रहता था। वह राक्षस भी उन बैलों को अपना भोजन बनाना चाहता था। एक रात को वह चोर अपने काम पर लग गया। जब वह पंडित के घर में घुसा तो देखा कि राक्षस तो पहले से जमा हुआ है। अब दोनों में इस बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया कि बैलों पर किसका अधिकार होना चाहिए।

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चोर इस बात से भी चिंतित था कि उनके झगडे के शोरगुल से पंडित की नींद ना खुल जाए। राक्षस भी इस बात को लेकर चिंतित था कि कहीं बैल डर गए तो पंडित उठ जाएगा। लेकिन दोनों में से कोई इस बात पर राजी नहीं था कि एक-एक बैल लेकर चला जाए। इस कोलाहल से पंडित की नींद टूट गई।

जब पंडित जगा तो उसने चोर और राक्षस को आपस में झगड़ते हुए देखा। पंडित ने कोई मन्त्र पढ़ना शुरू कर दिया। मन्त्र के प्रभाव से राक्षस दर गया और वहां से भाग गया। चोर ने सोचा कि जब वह पंडित उस राक्षस को डरा सकता है तो उस जैसे अदने से मनुष्य की क्या औकात। चोर भी डर कर वहां से भाग गया।

इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि जब दो लोग झगड़ रहे हों तो इससे किसी तीसरे व्यक्ति को फ़ायदा होता है।