चार भाई और मुर्दा शेर
किसी नगर में चार भाई रहते थे। उनमे से तीन भाई बहुत पढ़े लिखे थे लेकिन उनमे दुनियादारी की समझ नहीं थी। लेकिन चौथा भाई; जो सबसे छोटा था; पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन बहुत समझदार था। एक बार चारो भाई किसी जंगल से गुजर रहे थे। रास्ते में उन्हें किसी जानवर का कंकाल मिला। तीनों भाईओं ने अपनी पूरी बुद्धि यह पता करने में लगा दी कि वह कंकाल किस जानवर का होगा। कई वैज्ञानिक सिद्धांतो पर विचार करने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वह एक शेर का कंकाल था।
सबसे बड़ा भाई कंकाल तंत्र का विशेषज्ञ था। उसने हड्डियों को जोड़कर शेर का सम्पूर्ण कंकाल बना लिया। दूसरा भाई मांसपेशियों का विशेषज्ञ था। उसने कंकाल के ऊपर पेशियाँ और चमड़ा लगा दिया। अब उनके पास एक साबुत लेकिन मृत शेर पड़ा हुआ था। तीसरा भाई इतना हुनरमंद था कि मरे जानवर में भी जान फूंक दे। उसके लिए अपनी प्रतिभा दिखाने का इससे अच्छा मौक़ा नहीं मिलता।

सबसे छोटे भाई ने कहा मरे हुए शेर को ज़िंदा करना व्यर्थ होगा क्योंकि वह उन्हें मारकर खा जाएगा। लेकिन अन्य भाइयों ने उसकी अनसुनी कर दी। तब छोटे भाई ने कहा कि उन्हें जो मर्जी आए करें लेकिन उसके पहले वह अपनी जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ना पसंद करेगा। जब वह पेड़ पर चढ़ रहा था तो अन्य भाई उसका मजाक उड़ा रहे थे।
आखिरकार वह शेर ज़िंदा हो गया। तीनों भाई अपनी सफलता पर फूले नहीं समा रहे थे। लेकिन उनकी ख़ुशी ज्यादा देर नहीं टिकी क्योंकि शेर ने उनको निवाला बनाने में कोई देर नहीं की। छोटा भाई जो कि कुछ नहीं जानता था बच गया।
इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि किताबी ज्ञान व्यर्थ होता है यदि आपके व्यावहारिक ज्ञान में त्रुटि हो।