पंचतंत्र

राजा और कुम्हार

एक गाँव में एक कुम्हार रहता था। एक दिन वह बहुत नशे में था। ऐसे में वह एक घड़े से उलझकर गिर गया और उसके सिर पर गहरा घाव हो गया। कुछ दिनों के बाद घाव तो भर गया लेकिन उसकी ललाट पर एक बड़ा सा दाग छोड़ गया।

इस घटना के कुछ सालों बाद उस गाँव में अकाल पड़ा। रोजी रोटी की तलाश में वहां के लोगों को वह गाँव छोड़कर किसी दूसरे राज्य में जाना पड़ा। वह कुम्हार भी अन्य लोगों की तरह दूसरे राज्य को चला गया।

कुम्हार बड़ा भाग्यशाली था और उसे राजा के महल में नौकरी मिल गई। जब राजा ने कुम्हार की ललाट पर घाव का निशान देखा तो वह बड़ा प्रभावित हुआ। उसे लगा कि यह आदमी जरूर ही एक बहादुर योद्धा होगा क्योंकि इस तरह के दाग तो युद्ध की निशानी होते हैं।

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राजा उस कुम्हार की कुछ ज्यादा ही इज्जत करता था। कुछ समय बीतने के बाद कुम्हार के पद में भी तरक्की हुई और वह राजा के दरबार में एक सम्मानित दरबारी बन गया। अपने बढे हुए ओहदे और बढ़ी हुई इज्जत से कुम्हार भी काफी खुश था।

एक दिन पड़ोस के राजा ने उस राज्य पर आक्रमण कर दिया। अब इस राजा ने कुम्हार से कहा, "हमें लगता है कि हमारी सेना का नेतृत्व तुम जैसा वीर पुरुष करे। जाओ और सेनापति का पद सम्भालो। अभी इस राज्य को तुम्हारी सख्त जरूरत है।"

ऐसा सुनकर कुम्हार ने बताया कि वह तो एक मामूली कुम्हार है। फिर उसने उस दाग के पीछे की पूरी कहानी बता दी। राजा को अपनी भूल पर शर्मिन्दा होना पड़ा।

इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि किसी के पहनावे को देखकर उसके व्यक्तित्व का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए।