खनिज संसाधन
खनिज: जो पदार्थ प्राकृतिक रूप में उपलब्ध है, और जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है उसे खनिज कहते हैं।
खनिजों के प्रकार
खनिज तीन प्रकार के होते हैं; धात्विक, अधात्विक और ऊर्जा खनिज।
धात्विक खनिज:
- लौह धातु: लौह अयस्क, मैगनीज, निकेल, कोबाल्ट, आदि।
- अलौह धातु: तांबा, लेड, टिन, बॉक्साइट, आदि।
बहुमूल्य खनिज: सोना, चाँदी, प्लैटिनम, आदि।
अधात्विक खनिज: अभ्रक, लवण, पोटाश, सल्फर, ग्रेनाइट, चूना पत्थर, संगमरमर, बलुआ पत्थर, आदि।
ऊर्जा खनिज: कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस।
खनिज के भंडार
आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में
इस प्रकार की चट्टानों में खनिजों के छोटे जमाव शिराओं के रूप में, और बड़े जमाव परत के रूप में पाये जाते हैं। जब खनिज पिघली हुई या गैसीय अवस्था में होती है तो खनिज का निर्माण आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में होता है। पिघली हुई या गैसीय अवस्था में खनिज दरारों से होते हुए भूमि की ऊपरी सतह तक पहुँच जाते हैं। उदाहरण: टिन, जस्ता, लेड, आदि।
अवसादी चट्टानों में
इस प्रकार की चट्टानों में खनिज परतों में पाये जाते है। उदाहरण: कोयला, लौह अयस्क, जिप्सम, पोटाश लवण और सोडियम लवण, आदि।
धरातलीय चट्टानों के अपघटन के द्वारा
जब अपरदन द्वारा शैलों के घुलनशील अवयव निकल जाते हैं तो बचे हुए अपशिष्ट में खनिज रह जाता है। बॉक्साइट का निर्माण इसी तरह से होता है।
जलोढ़ जमाव के रूप में
इस प्रकार से बनने वाले खनिज नदी के बहाव द्वारा लाये जाते हैं और जमा होते हैं। इस प्रकार के खनिज रेतीली घाटी की तली और पहाड़ियों के आधार में पाये जाते हैं। ऐसे में वो खनिज मिलते हैं जिनका अपरदन जल द्वारा नहीं होता है। उदाहरण: सोना, चाँदी, टिन, प्लैटिनम, आदि।
महासागर के जल में
समुद्र में पाये जाने वाले अधिकतर खनिज इतने विरल होते हैं कि इनका कोई आर्थिक महत्व नहीं होता है। लेकिन समुद्र के जल से साधारण नमक, मैग्नीशियम और ब्रोमीन निकाला जाता है।
लौह अयस्क
अच्छी क्वालिटी के लौह अयस्क में लोहे की अच्छी मात्रा होती है। मैग्नेटाइट में सबसे अधिक (70%) लोहा होता है इसलिए इसे सबसे अच्छी क्वालिटी का लौह अयस्क माना जाता है। अपने उत्तम चुम्बकीय गुण के कारण मैग्नेटाइट विद्युत उद्योग के लिये अच्छा माना जाता है। हेमाटाइट मुख्य औद्योगिक अयस्क है और इसमें 50 से 60% लोहा होता है।
चित्र: भारत में लौह अयस्क
भारत में लौह अयस्क के मुख्य बेल्ट
उड़ीसा झारखंड बेल्ट
इस बेल्ट में लौह अयस्क की प्रचुरता है। उड़ीसा के मयूरभंज और केंदुझर जिले की बादामपहाड़ की खानों में हाई ग्रेड का हेमाटाइट अयस्क पाया जाता है। झारखंड के सिंहभूम जिले के गुआ और नोआमुंडी की खानों में भी हेमाटाइट अयस्क पाया जाता है।
दुर्ग बस्तर चंद्रपुर बेल्ट
यह बेल्ट छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में पड़ता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की बैलादिला पहाड़ियों में हाई ग्रेड का हेमाटाइट अयस्क पाया जाता है। इन पहाड़ियों में सुपर हाई ग्रेड हेमाटाइट अयस्क के 14 भंडार हैं। इन खानों से निकलने वाले लोहे को विशाखापत्तनम के बंदरगाह से जापान और दक्षिण कोरिया तक निर्यात किया जाता है।
बेल्लारी चित्रदुर्ग चिकमगलूर बेल्ट
यह बेल्ट कर्णाटक में पड़ता है। पश्चिमी घाट में स्थित कुद्रेमुख की खानों से उत्पादित लौह का शत प्रतिशत निर्यात होता है। यहाँ से निकलने वाले लौह अयस्क को स्लरी के रूप में पाइपलाइन के द्वारा मंगलोर के निकट के बंदरगाह तक भेजा जाता है।
महाराष्ट्र गोवा बेल्ट
इस बेल्ट में गोवा राज्य और महाराष्ट्र का रत्नागिरी जिला आता है। यहाँ के खानों के अयस्क की क्वालिटी अच्छी नहीं हैं। इन अयस्कों को मारमागाओ पोर्ट से निर्यात किया जाता है।
मैगनीज
मैगनीज का इस्तेमाल मुख्य रूप से स्टील और फेरो-मैगनीज अयस्क के निर्माण में होता है। इसका इस्तेमाल ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक और पेंट बनाने में भी होता है।
चित्र: भारत में मैगनीज अयस्क
तांबा
तांबा एक महत्वपूर्ण अयस्क है। तांबे का इस्तेमाल मुख्य रूप से बिजली के तार, इलेक्ट्रॉनिक और रसायन उद्योग में होता है। भारत का 52% तांबा मध्यप्रदेश की बालाघाट की खानों से निकलता है। शेष 48% तांबा राजस्थान की खानों से मिलता है। थोड़े बहुत तांबे का उत्पादन झारखंड के सिंहभूम जिले में भी होता है।
अलमुनियम
अलमुनियम हल्का और मजबूत होता है, इसलिए इसका इस्तेमाल कई चीजें बनाने में होता है। अलमुनियम के अयस्क को बॉक्साइट कहते हैं। अमरकंटक के पठार, मैकाल पहाड़ी और बिलासपुर कटनी के पठारी क्षेत्रों में बॉक्साइट के मुख्य भंडार हैं। उड़ीसा बॉक्साइट का मुख्य उत्पादक है, जहाँ 45% बॉक्साइट का उत्पादन होता है। उड़ीसा में बॉक्साइट के मुख्य भंडार पंचपतमाली और कोरापुट जिले में स्थित हैं।
अभ्रक
अभ्रक एक ऐसा खनिज है जो पतली प्लेटों के कई लेयर से बना होता है। अभ्रक की प्लेटें इतनी पतली होती हैं कि कुछ ही सेंटीमीटर अभ्रक की शीट में हजारों प्लेटें हो सकती हैं। अभ्रक के पास उच्च डाई-इलेक्ट्रिक शक्ति, निम्न ऊर्जा ह्रास फैक्टर, इंसुलेशन प्रोपर्टी और हाई वोल्टेज से रेसिस्टेंस की शक्ति होती है। इसलिए अभ्रक का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में होता है।
छोटानागपुर पठार के उत्तरी किनारों पर अभ्रक के भंडार पाये जाते हैं। झारखंड का कोडरमा गया हजारीबाग बेल्ट अभ्रक का मुख्य उत्पादक है। अभ्रक का उत्पादन राजस्थान के अजमेर और आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में भी होता है।
खनन के दुष्प्रभाव
खानों में काम करने वाले मजदूरों और आस पास रहने वाले लोगों के लिये खनन एक घातक उद्योग है। खान में काम करने वाले मजदूरों को कठिन परिस्थिति में काम करना पड़ता है। खान के अंदर प्राकृतिक रोशनी नहीं पहुँचती है। खानों के भीतर हमेशा खान की छत गिरने, पानी भरने और आग लगने का खतरा बना रहता है। खान के आस पास के इलाकों में धूल की विकट समस्या होती है। खान से निकलने वाली स्लरी सड़कों और खेतों को नुकसान पहुँचाती है। खान के आसपास के इलाकों में घर और कपड़े ज्यादा जल्दी गंदे हो जाते हैं। खान में काम करने वाले मजदूरों को सांस की बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है। खनन वाले इलाकों में सांस की बीमारी के केस अधिक होते हैं।
खनिजों का संरक्षण
खनिजों के बनने में करोड़ों वर्ष लग जाते हैं। इसलिये खनिज एक अनवीकरण योग्य संसाधन है। हम बड़ी तेजी से खनिजों का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन खनिजों के पुनर्भरण की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। इसलिए खनिजों का संरक्षण करना महत्वपूर्ण हो जाता है।