स्पर्श 10 हिंदी


आत्मत्राण

रवींद्रनाथ टैगोर

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।

ये कविता एक ऐसे व्यक्ति की प्रार्थना है जो स्वयं सुब कुछ करना चाहता है। किसी हारे हुए जुआरी की तरह वह सब कुछ भगवान भरोसे नहीं छोड़ना चाहता है। उसका अपने आप पर पूरा भरोसा है। उसे भरोसा है कि वह हर मुसीबत का सामना कर सकता है और भगवान से सिर्फ मनोबल पाने की इच्छा रखता है।

दुख ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।

जब दुख से मन व्यथित हो जाए तब उसे ईश्वर से सांत्वना की अभिलाषा नहीं है, बल्कि वह ये प्रार्थना करता है कि उसे हमेशा दुख पर विजय प्राप्त हो।

कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।

कहीं किसी से मदद ना मिले तो भी उसका पुरुषार्थ नहीं हिलना चाहिए। लाभ की जगह कभी हानि भी हो जाए तो भी मन में अफसोस नहीं होना चाहिए।

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।

वह भगवान से ये नहीं चाहता है कि वो उसकी नैया को पार लगा दें, बल्कि उसमें नाव खेने और तैरने की असीम शक्ति दे दें। इससे वह खुद ही मुसीबतों के भँवर से पार हो सकता है।

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।

वह भगवान से अपनी जिम्मेदारियाँ कम करने की विनती नहीं करता। वह तो इतनी दृढ़शक्ति चाहता है जिससे वह जीवन के भार को निर्भय उठाकर जी सके।

नव शिर होकर सुख के दिन में
तव मुह पहचानूँ छिन-छिन में।
दुख रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।

इन पंक्तियों में ये संदेश दिया गया है कि सफलता के नशे में चूर होकर ईश्वर को भूलना नहीं चाहिए। हर उस व्यक्ति को याद रखना चाहिए जिसने आपको सफल बनाने में थोड़ा भी योगदान दिया हो। जब मेरे दिन बहुत बुरे चल रहे हों और पूरी दुनिया मुझ पर अंगुली उठा रही हो तब भी ऐसा न हो कि मैं तुमपर कोई शक करूँ।

एक कहावत है कि भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करता है। किस्मत के ताले की एक ही चाभी है और वो है कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प। ईश्वर का काम है मनोबल और मार्गदर्शन, लेकिन अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए आपको चलना तो खुद ही पड़ेगा।

आप अगर आधुनिक युग के सफल व्यक्तियों के बारे में पढ़ेंगे तो आपको उनकी कठिन दिनचर्या का अहसास होगा। साथ में इन सब व्यक्तियों में एक और समानता है और वो है उनका अहंकारहीन व्यक्तित्व।