9 हिंदी क्षितिज


उपभोक्तावाद की संस्कृति

श्यामाचरण दुबे

NCERT Solution

Part 2

Question 5: कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों?

उत्तर: विज्ञापन का निर्माण ऐसे लोगों की टीम द्वारा होता है जो इस बात में दक्ष होते हैं कि किस तरह से लोगों को किसी उत्पाद को खरीदने के लिए लालायित करें। विज्ञापन में अकसर खूबसूरत चेहरे और आकर्षक दृश्य दिखाए जाते हैं। अक्सर कोई मशहूर हस्ती विज्ञापन के जरिए हमें किसी उत्पाद को खरीदने के लिए कहती है। ऐसा लगने लगता है कि हम भी उसी हस्ती की तरह आकर्षक, सुखी और कम से कम थोड़े से मशहूर तो हो ही जाएँगे। कई बार ऐसा लगता है कि किसी उत्पाद को न खरीदने से हमारी इज्जत हमारे रिश्तेदारों और मित्रों में कम हो जाएगी। इसलिए हम विज्ञापन देखकर किसी वस्तु को खरीदने के लिए लालायित हो जाते हैं।

Question 6: आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।

उत्तर: यदि गुणवत्ता और विज्ञापन की बात करें तो किसी भी वस्तु को खरीदने का आधार उसकी गुणवत्ता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए जब हम साबुन का कोई ब्रांड खरीदते हैं तो उसकी सफाई करने की क्षमता ही हमारे लिए कसौटी होनी चाहिए। यदि कोई साबुन किसी सिने तारिका का मनपसंद साबुन बताया भी जाता है तो भी उसे खरीदने से पहले हमें उसकी कार्यक्षमता को परखना अधिक जरूरी हो जाता है।

Question 7: पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर: आज हर तरफ दिखावे की संस्कृति का बोलबाला है। यदि आप ब्रांडेड ड्रेस नहीं पहनते हैं तो आप एक पिछड़े हुए व्यक्ति हैं। यदि आपके घर मे बड़े स्क्रीन वाला टी.वी. नहीं है तो पड़ोसी आपको इज्जत नहीं देंगे। यदि आपके पास लंबी कार नहीं है तो समस्या है; भले ही उस कार को खरीदने का बजट आपके पास नहीं हो। यह होड़ लोगों पर अनावश्यक दबाव डाल रही है। कई लोग जितनी कीमत का मोबाइल फोन खरीदते हैं उतनी उनका मासिक वेतन भी नहीं होता है। इसके कारण समाज में अपराध भी तेजी से बढ़े हैं। खासकर से युवा पीढ़ी तो इस संस्कृति से बुरी तरह प्रभावित है।

Question 8: आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीत रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर: आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीत रिवाजों और त्योहारों को भी प्रभावित कर रही है। इसके कई उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं। अब लोग किसी रिश्तेदार के यहाँ जाते हैं तो उनका स्वागत शीतल पेय से होता है। होली, दीवाली या ईद के अवसर पर भी लोग पिज्जा और बर्गर खाने लगे हैं। करवा चौथ या धनतेरस के दिन लोगों को लगने लगा है कि महंगे आभूषण और गाड़ी खरीदना जरूरी हो गया है। अब पर्व त्योहारों पर धार्मिकता का भाव गौण होने लगा है और दिखावे में एक दूसरे से होड़ लगाना प्राथमिकता बन गई है।