मूर्ख साधु और ठग
किसी गाँव में एक साधु रहता था। उसे अपने भक्तों से दान में तरह तरह के वस्त्र मिलते थे। उन वस्त्रों को बेचकर उस साधु ने काफी धन जमा कर लिया था। लेकिन वह साधू हमेशा अपने धन की सुरक्षा के लिए चिंतित रहता था। वह अपने धन को एक पोटली में रखता था और उसे हमेशा अपने साथ लेकर ही चलता था।
उसी गाँव में एक ठग रहता था। बहुत दिनों से उसकी निगाह साधु के धन पर थी। ठग हमेशा साधु का पीछा किया करता था, लेकिन साधु उस गठरी को कभी अपने से अलग नहीं करता था। आखिरकार, उस ठग ने एक छात्र का वेश धरा और उस साधु के पास गया। उसने साधु से मिन्नत की कि वह उसे अपना शिष्य बना ले क्योंकि वह ज्ञान प्राप्त करना चाहता था। साधु तैयार हो गया और इस तरह से वह ठग साधु के साथ रहने लगा।
ठग ने साधु की खूब सेवा की और जल्दी ही उसका विश्वासपात्र बन गया। एक दिन वे दोनों पास के किसी गाँव में एक धार्मिक अनुष्ठान में जा रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ी और साधु ने स्नान करने की इक्षा व्यक्त की। उसने पैसों की गठरी को एक कम्बल के भीतर रखा और उसे नदी के किनारे रख दिया। उसने ठग से सामान की रखवाली करने को कहा और खुद नहाने चला गया। ठग को तो कब से इसी पल का इंतज़ार था। जैसे ही साधु नदी में डुबकी लगाने गया, वह रुपयों की गठरी लेकर चम्पत हो गया।
इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है सिर्फ इसलिए किसी पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए कि वो चिकनी चुपड़ी बातें करता है।